इस जगमगाते शहर में
मानव जैसे खो गया है
देखा टटोलकर बहुत जन को
अंतर्मन सबका जैसे खो गया है १
कहीं खो गयी संवेदना
जो मानवता का श्रृंगार है
प्रगति पथ पर बढते मानव की-
सबसे बड़ी ये हार है १
आडंबर से ओतप्रोत
सबने खोया अपना होश है
इस मानव मन की विकृति के पीछे-
आखिर किसका दोष है ?
क्यों छोड़ मूल भाव ह्रदय के -
सब ऊचाई को चाहते हैं ?
क्यूँ भूल रहे सत्य यह शाश्वत
शुद्ध अंत:करण है जिनका
वे जन ही ऊचाई को पाते हैं १
ढल गया दिन हुई जगमग राहें
इन राहों पर मैं भी चलता हूँ
ढलते हुए हर दिन क साथ
पल-पल मैं भी ढलता हूँ १
घुटता है दम यहाँ,
साँसों मे भी भारीपन है
शिकायत तो नहीं किसी से,
किन्तु यहाँ लगता नहीं मेरा मन हैं १
सांझ हुई है,
इस वेला में-
हे इष्ट तुम्हे वंदन करता हूँ,
नहीं खोने देना मुझको चमक मे
खो जाने से मैं डरता हूँ ११
VERY NICE SIR.........
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